बुधवार, 11 नवंबर 2009

ब्लॉग का नाम तय करने से पहले काफी सोचा लेकिन आकर ठहरा अनपेक्षः पर। यह शब्द गीता के श्लोक---
‘अनपेक्ष: सुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथा, सर्वारंभ परित्यागी यो न मद्भक्त स में प्रिय’
का प्रारंभिक संस्कृत शब्द है। इस ध्येय श्लोक से मुझे बिना किसी से कोई अपेक्षा रखे, हर स्थिति में शुद्ध, सम और दक्ष बनने को प्रेरणा मिलती है। और सब कुछ पाकर भी बिना मोह के उसका त्याग करने की शक्ति भी मिलती है।

मंगलवार, 10 नवंबर 2009

एक शहीद की जेल डायरी


भगत सिंह की जेल डायरी पढ़ी। कई ऐसी बातें मालूम हुई जिनसे मैं अभी तक अनभिज्ञ था । भगत सिंह हर किताब को पढ़ने के बाद, जो उन्हें अच्छा लगता उसे वे अपनी डायरी में उतार लेते थे। खासकर वे परिभाषाएं जो उनके तर्कों की कसोटी पर खरी उतर जाती थी। वे बाकायदा उस किताब और उसके लेखक का नाम , पेज नंबर तक डालते थे। उसके बाद तीन या चार लाइन में अपने तर्क लिखते थे। किरती और प्रताप में छपे उनके लेख उनकी डायरी के लिखे तथ्यों और परिभाषाओं का विश्लेषण हुआ करते थे। बहुत कम लोगो को यह बात मालूम होगी की उन्होंने जेल में चार किताबे भी लिखीं थीं। जिनकी पाण्डुलिपि आजतक सामने नही आ पाने के कारन लोग इस पहलू से अनजान हैं। उनकी लिखी किताबों में --- दी रिवोलुश्नरी हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया, इत दी डोर ऑफ़ डेथ, अपनी आत्मकथा । एक अन्य ओर।