बुधवार, 11 नवंबर 2009

ब्लॉग का नाम तय करने से पहले काफी सोचा लेकिन आकर ठहरा अनपेक्षः पर। यह शब्द गीता के श्लोक---
‘अनपेक्ष: सुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथा, सर्वारंभ परित्यागी यो न मद्भक्त स में प्रिय’
का प्रारंभिक संस्कृत शब्द है। इस ध्येय श्लोक से मुझे बिना किसी से कोई अपेक्षा रखे, हर स्थिति में शुद्ध, सम और दक्ष बनने को प्रेरणा मिलती है। और सब कुछ पाकर भी बिना मोह के उसका त्याग करने की शक्ति भी मिलती है।

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