शनिवार, 19 दिसंबर 2009

एक मिट जाने की हसरत अब दिले बिस्मिल में है....

सबेरे सबेरे नींद खुली तो आज के अखबारों पर नजर दौड़ाई. एक एक कर सारे अखबार पलट ही रहा था कि अचानक राज एक्सप्रेस की बॉटम स्टोरी पर नजर रूक गई. खबर थी कि मुरैना जिले में पं.रामप्रसाद बिस्मिल की शहादत दिवस पर एक मंदिर बनाकर उनकी प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कराई जा रही है. देशभर में यह ऐसा पहला मंदिर होगा, जिसमें आजादी के लिए लडऩे वाले किसी क्रांतिकारी का मंदिर बनाया गया है और बाकायदा पुजारी नियुक्त कर पूजा की जाएगी.
रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और रोशन सेठ को अंग्रेजी हुकूमत ने कांकोरी कांड में अभियुक्त मानते हुए 19 दिसंबर को 1827 में गोरखपुर जेल में फांसी पर चढ़ा दिया था.
बिस्मिल साहब के जन्म को लेकर देशभर में अलग अलग मान्यता है. मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के लोग उन्हें अपने यहां का मानते हैं. वहीं गोरखपुर के लोग उन्हें अपने यहां का बताते हैं. कुछ दस्तावेजों में बिस्मिल साहब का जन्म शाहजहांपुर दिया गया है. हिंदू-मुस्लिम एकता के पैरोकार इस क्रांतिकारी को खुद से जुड़ा हुआ बताने वालों की देशभर में कही भी कमी नहीं हैं. बिस्मिल साहब का लिखी गजल सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है..., वंदे मातरम् के बाद आजादी के दीवानों में सबसे ज्यादा गाई जाती थी।
बिस्मिल साहब केवल एक क्रांतिकारी ही नहीं नौजवानों को क्रांतिकारी बनाने अगुआ थे.

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